*जिस प्रकार से जहर को खा लेने पर वह स्वयं के लिए घातक होता है। उसी प्रकार से आपका क्रोध, आपकी नफरत, आपकी ईर्ष्या और आपका द्वेष भी एक धीमा जहर है।। अगर इसको आप स्वयं पीते हैं तो परिणाम भी आपको स्वयं ही भुगतना पड़ेगा आदमी क्रोध, नफरत, ईर्ष्या और द्वेष करता है। और सोचता है।। कि इससे दूसरों का अहित होगा मगर याद रखना यदि इन सभी जहरों का पान आप कर रहे हैं। तो अहित किसी और का कैसे हो सकता है।। आपके दुर्गुण, आपकी संकीर्णताएं, आपकी आंतरिक विकृतियां किसी और का अहित, किसी और का बुरा करे ना करे मगर स्वयं आपका बुरा और आपका अहित अवश्य करने वाले हैं। किसी के घर को जलाने वाले चिराग को भी सबसे पहले स्वयं को ही जलाना पड़ता है।। आंतरिक विकार मनुष्य द्वारा अपने ही मार्ग में खोदे गये उस कूप के समान है, जिसमें देर-सबेर उसका गिरना अवश्यंभावी हो जाता है। जीवन के समस्त आंतरिक विकारों के समूल नाश के लिए केवल मात्र एक महौषधि, एक मात्र संजीवनी बूटी है।। अमिय मूरिमय चूरन चारू समन सकल भव रुज परिवारू और वह है। सद्गुरु की शरण, जो हमें सद ग्रंथ और सत्संग का आश्रय दिलाकर सदमार्ग की ओर निरंतर गति कराते हुए उस परम सत्य तक ले जाती है।।*
🌺🙏🌺जय श्री राधे🌺🙏🌺