*याद रखो-निष्काम कर्म मुक्ति में हेतु है। और सकाम कर्म जन्म मृत्यु का कारण है।। निष्काम भाव में पाप के लिए स्थान नहीं है। और वह मनुष्य के बंधनों को काटता है और सकाम भाव पाप की जननी है।। अतः नए-नए बंधनों में जकड़ता है। बंधनों के स्वरूप में अंतर हो सकता है।। बेड़ी चाहे सोने की हो या लोहे की वह बंधन ही है। कामना-भोग मात्र ही दुख देने वाले हैं।। जितने भी भोग हैं, सब दुखी योनि है। पुनर्जन्म या परलोक की कामना से कर्म करना भी मूर्खता है।। जो कर्म महान श्रम उठाकर उसके फलस्वरुप दुखों को बुला ले वह तो मूर्खता ही है।
भोग-कामना मात्र ही बंधनकारक है, और जन्म-मरण देने वाली हैं।। इसलिए वह त्याज्य है। भगवत प्राप्ति की, भजन की, कामना के नाश की, वैराग्य की कामना त्याज्य नहीं है।। क्योंकि ऐसी कामना अंत: करण की शुद्धी में हेतु है। विराट भगवान के स्वरूपभूत इस संसार का प्रवाह तो चलता ही रहता है।। जो पुरुष भगवान के इस खेल को खेल समझ कर अपने जिम्मे का काम किया जाता है। उसे तो बड़ा मजा आता है।। पर जो इसमें कहीं आसक्ती या कामना कर बैठता है वह बुरी तरह फस जाता है।
अतः कर्म करते रहो पर कहीं फंसो मत। जो कर्म भगवान के लिए होंगे वह अपने आप ही शुभ होंगे, वह सत्कर्म ही होंगे उनमें न तो कहीं झूठ, कपट, छल होगा न किसी का अनिष्ट करने की कल्पना होगी और न उनसे कभी किसी का अनिष्ट होगा ही उन से स्वभाविक ही जगत की सेवा होगी क्यों कि सर्वांतर्यामी स्वरूप भगवान की सेवा ही जगत की सेवा है।!*
🌺🙏🌺जय श्री राधे🌺🙏🌺