personality development in hindi : जब भी विशिष्ट व्यवसायियों, प्रशासकों तथा अन्य व्यक्तियों से बातचीत होती है तो किसी न किसी रूप में यह बिन्दु अवश्य ही सामने आता है कि ऐसा कौन-सा सूत्र है जिससे कम से कम परिश्रम और कम से कम समय में अधिक से अधिक सफलता (Success) प्राप्त की जा सकती है।
अनुभव यह दर्शाता है कि अभी ..तक ऐसा कोई नुस्खा जैसे-‘एक चम्मच ये, एक चम्मच वो, दिन में तीन बार’ लेने का नहीं बना है जिससे निश्चित रूप से सफलता प्राप्त हो सके। विशिष्टता (Specialty) की कुंजी वैज्ञानिक रूप से किया गया व्यवस्थित कठोर परिश्रम (hard work) ही है।
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व्यवस्थित कार्य योजना सफलता का द्वार personality development tips
कभी-कभी कुछ लोगों को बिना मेहनत से ही विशिष्टता (Specialty) प्राप्त हो जाती है। लेकिन यह विशिष्टता उनके लिए एक थोपी गई वस्तु के समान ही होती । कठोर परिश्रम (hard work) से प्राप्त विशिष्टता में बहुत अंतर होता है। कठोर परिश्रम से प्राप्त विशिष्टता से साहस, सन्तुष्टि तथा शक्ति (satisfaction and power) प्रदर्शित होती है। विशिष्टता उच्च कोटि के कार्य की देन है। स्पष्टतः विशिष्टता का अर्थ किसी भी कार्य को सुचारू ढंग से चलाने के लिए अन्य लोगों से बेहतर करना होता है।
दैनिक रूप से किए जाने वाले कार्यों में साधारणतया वैज्ञानिक विश्लेषण का अभाव रहता है, जिसके फलस्वरूप कार्य सम्पादित होने के बाद भी उस कार्य में विशिष्टता नहीं हो पाती है, जिसका नकारात्मक पहलू यह होता है कि व्यक्ति लक्ष्य को भूलकर अन्य साधारण तथ्यों की ओर अग्रसर हो जाता है। इसी कारण अनुचित प्रतिस्पर्धा (unfair competition) जन्म लेती है। यह अनुचित प्रतिस्पर्धा (unfair competition ) स्वयं व्यक्ति तथा उसके संगठन की प्रगति में अवरोध उत्पन्न करती है।
इस संदर्भ में यह अध्यन करना आवश्यक हो जाता है कि ऐसे कौन से कदम हैं, जिनको करने से विशिष्टता (Specialty) प्राप्त की जा सकती है। विशिष्टता प्राप्ति के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं, जिनको व्यवस्थित रूप से कार्यान्वित करके पक्के तौर पर विशिष्टता (Specialty) प्राप्त की जा सकती है।
प्रतिरूप
विशिष्टता प्राप्ति के लिए प्रतिरूप में कुछ अनिवार्य कदम हैं। ये कदम अनुभव, परीक्षण तथा वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित हैं, जो कि बिलकुल सरल और स्वयं सिद्ध हैं। यदि कड़ी मेहनत से इन कदमों को कार्यान्वित किया जाए। तो विशिष्टता प्राप्त करने में कोई संदेह नहीं रह जाता है, लेकिन किसी भी कदम को छोड़ देने या नकार देने पर अन्य पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव (Adverse effect) पड़ेगा। उपलब्धियों का यह प्रतिरूप मुख्य रूप से एक त्रिकोण पर आधारित है
सफलता में सहयोगी ( 6 Friends ) छः मित्र
रडयर्ड किपलिंग ने एक स्थान पर सफलता में सहयोगी अपने छः मित्रों का उल्लेख किया है। ये छः मित्र हमारे इस प्रतिरूप के हर कदम के लिए भी आवश्यक है। इन मित्रों के नाम हैं
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क्या
क्यों
कब
कैसे
कहां
कौन
इन मित्रों का उपयोग, जैसा कि औपचारिक तौर पर कहा जाता है ’24-7′ अर्थात दिन के 24 घंटों तथा सप्ताह के सातों दिनों में किया जाना चाहिए। तात्पर्य यह है कि इन छ: मित्रों का हर कदम पर हर बार विश्लेषण किया जाना आवश्यक है क्योंकि ये ही विशिष्टता की मूलभूत जरूरत हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा ‘मुझे’ ‘क्यों की हर समय आवश्यकता रहती है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि सामान्य व्यक्ति अपनी कार्य क्षमता का 25 से 35 प्रतिशत ही उपयोग करता है। अतः कार्य करते समय इन कदमों का पूर्ण रूप से उपयोग किया जाए तो कार्य में गुणात्मक वृद्धि हो सकती है। यदि कोई मित्र यह कहता है कि विशिष्टता के लिए छोटा रास्ता भी है तो उस मित्र से दूरी बनाए रखना और उसकी बातों पर कम ध्यान देना ही बुद्धिमता है।
सफलता के साधन
विशिष्टता प्राप्ति में कोई भी शारीरिक विकलांगता अवरोध नहीं बनती। महाकवि सूरदास, मिल्टन अंधे थे। हैलन कैलर अंधी और बहरी थीं टालस्टॉय पूरी जिन्दगी दुखी जीवन व्यतीत करते रहे लेकिन इन सभी ने जो ख्याति और विशिष्टता अर्जित की. वह इस बात की साक्षी हैं।
एक बार दुर्घटना में दो मित्रों का एक-एक हाथ कट गया। एक मित्र अपने कटे हुए हाथ को लेकर पछताता रहा लेकिन दूसरे मित्र ने एक ही हाथ से कार्य कर ऐसी विशिष्टता प्राप्त की कि आखिर में वह स्वयं ही यह कहने लगा- ‘मुझे अचरज है कि भगवान ने हमें दो हाथ क्यों दिए जबकि हम एक हाथ से ही सब कुछ कर सकते हैं।
भर्तृहरि शतक में बताया गया है कि संसार में तीन तरह के मनुष्य होते हैं। अधम, मध्यम, उत्तम उसी प्रकार उनके कार्य भी तीन तरह के होते हैं
- अधम लोग भय से किसी कार्य को शुरू ही नहीं करते हैं।
- ‘मध्यम श्रेणी के मनुष्य कार्य शुरू करके बीच में विघ्नों के आ जाने पर उनसे दुःखी होकर रूक जाते हैं।
- किन्तु उत्तम प्रकृति के लोग बार-बार विघ्नों के प्रहार पड़ने पर भी आरम्भ किये कार्य को नहीं छोड़ते हैं, अपितु उसे पूरा करके ही दम लेते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति अपना मानसिक, भावनात्मक तथा शारीरिक वातावरण स्वयं बनाता है। हम अपने भविष्य तथा भाग्य के स्वयं निर्माता होते हैं। भविष्य स्वयं प्रकट न होकर हमारे अच्छे एवं बुरे कार्यों के आधार पर हमारे स्वयं के द्वारा ही बनाया जाता है।
विशिष्टता हासिल करने के लिए प्रतिरूप के कदम शायद बिल्कुल आसान लगें परन्तु वास्तविक रूप में यह किसी भी कार्य के सफल अथवा असफल होने की नींव है।
इनका सही उपयोग करके अधिकतम कुशलता हासिल की जा सकती है। इनका विधिवत प्रयोग सफलता की गारंटी है परन्तु किसी कदम के छूटने से पूर्णरूपेण सफलता प्राप्त नहीं होती है। इन कदमों को विविध परिस्थितियों में प्रयोग में लिया जा चुका है।
हम इन्हें प्रयोग करके अनुकूल परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। सोते-जागते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, सफलता का ही चिंतन करना है। आंखों की ओट से सफलता को विलग नहीं होने देना है। सफलता से बढ़कर कोई निधि नहीं, सफल आदमी से बढ़कर कोई सिद्ध नहीं।
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