*🙏चैत्र नवरात्रि 2021🚩*
हिंदू धर्म में शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रि का विशेष महत्व माना जाता है. वैसे तो साल में नवरात्रि 4 बार आती है लेकिन इनमें से 2 नवरात्रि गुप्त नवरात्रि होती है जो माघ महीने में और आषाढ़ महीने में आती है. तो वहीं बाकी 2 नवरात्रि यानी चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि का महत्व सबसे अधिक होता है. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों की आराधना की जाती है. चैत्र नवरात्रि का महत्व इसलिए भी अधिक होता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन से हिंदू नव वर्ष यानी कि नव सम्वत्सर की शुरुआत होती है.
पंचांग के अनुसार नवरात्रि का पर्व इस वर्ष 13 अप्रैल को मनाया जाएगा. इस दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि रहेगी. इस दिन अश्विनी नक्षत्र और विश्कुंभ योग बन रहा है. इसी दिन घटस्थापना की जाएगी. चैत्र नवरात्रि का समापन 22 अप्रैल 2021 को किया जाएगा.
*चैत्र नवरात्रि शुभ मुहूर्त*
चैत्र घटस्थापना मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को
घटस्थापना मुहूर्त – 05:58 ए एम से 10:14 ए एम
अवधि – 04 घण्टे 16 मिनट्स
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:56 ए एम से 12:47 पी एम
अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है.
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 12, 2021 को 08:00 ए एम बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 13, 2021 को 10:16 ए एम बजे
*चैत्र नवरात्रि की तिथियां*
पहला दिन- 13 अप्रैल 2021- शैलपुत्री
दूसरा दिन- 14 अप्रैल 2021- ब्रह्मचारिणी
तीसरा दिन- 15 अप्रैल 2021- चंद्रघंटा
चौथा दिन- 16 अप्रैल 2021- कूष्मांडा
पांचवां दिन- 17 अप्रैल 2021- स्कंदमाता
छठा दिन- 18 अप्रैल 2021- कात्यायनी
सातवां दिन- 19 अप्रैल 2021- कालरात्रि
आठवां दिन- 20 अप्रैल 2021- महागौरी , दुर्गा अष्टमी, महाष्टमी
नौवां दिन- 21 अप्रैल 2021- सिद्धिदात्री , नवमी हवन
*चैत्र महीने में सूर्य और देवी की उपासना लाभदायक होती है. नाम यश और पद प्रतिष्ठा के लिए सूर्य की उपासना करें. शक्ति और ऊर्जा के लिए देवी की उपासना करें.* 🅿
*🙏दशमहाविद्या स्तोत्रम🙏*
ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥१॥
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥
जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥३॥
हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥४॥
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥५॥
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥
श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥९॥
श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥
त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥११॥
सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥१२॥
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥१३॥
विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥१४॥
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥१५॥
भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥१६॥
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥१७॥
कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥१८॥
सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥१९॥
इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥२०॥
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*🌹JAI SHREE MAHAKAL🌹*