Sunday, May 28, 2023

EWS के लिए दाखिले और नौकरियों में 10% आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई

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EWS : केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए दाखिले और नौकरियों में 10% आरक्षण देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।


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इसपर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. एक वकील ने कहा कि केन्द्र का यह फैसल कई मायनों में संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है और आरक्षण के संबंध में 50% की सीमा का भी उल्लंघन होता है.

एक वकील ने दलील दी कि ईडब्ल्यूएस के लिए कोटा ‘धोखाधड़ी और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने की एक कोशिश’ है. वकील ने यह भी कहा कि इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) श्रेणियों से संबंधित गरीबों को शामिल नहीं किया गया है, जिसका मकसद क्रीमी लेयर धारणा को नाकाम बनाना है. ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए 10% आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 50% आरक्षण के अतिरिक्त है.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनी कीन वकीलों की दलील

चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच की ने ईडब्ल्यूएस कोटा संबंधी 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की है. दिन भर चली सुनवाई के दौरान बेंच ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करने वाली जनहित याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश तीन वकीलों की दलीलें सुनी.

पांच जजों की बेंच कर रही सुनवाई

शिक्षाविद मोहन गोपाल ने दलीलों की शुरुआत करते हुए बेंच से कहा, ईडब्ल्यूएस कोटा अगड़े वर्ग को आरक्षण देकर, छलपूर्ण और पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने की कोशिश है.’ बेंच में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस. रवींद्र भट, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं.

केर्ट में वकीलों की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में कहा गया, जो नागरिक शैक्षिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के साथ-साथ एससी और एसटी हैं, वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों में आने पर भी इस आरक्षण का लाभ नहीं ले सकते हैं. यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है, क्योंकि यह दर्शाता है कि सिर्फ उच्च वर्गों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पक्ष में विशेष प्रावधान किए गए हैं.

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने संवैधानिक योजनाओं का जिक्र किया और कहा, आरक्षण वर्ग-आधारित सुधारात्मक उपाय है जो लोगों के एक वर्ग के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय और गलतियों को दुरुस्त करता है और सिर्फ आर्थिक मानदंडों के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकता है.

वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने कहा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी से संबंधित गरीबों को बाहर रखने से यह प्रावधान सिर्फ अगड़े वर्गों के लिए हो गया है और इसलिए यह समानता और अन्य मौलिक अधिकारों के सिद्धांत का उल्लंघन है. इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.

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