Bhishma Ashtami 2023: माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ही भीष्म अष्टमी ( Bhishma Ashtami ) कहा जाता हैं। इस तिथि पर ( यानि आज के दिन ) व्रत करने का विशेष महत्व है । वेद पुराणों के अनुसार इस दिन भीष्म पितामह जी ने भगवान सूर्य देव के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे । इसलिए इस दिन सभी हिंदूओ को भीष्म पितामह जी के श्राद्ध हेतु निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए ।
यह व्रत माघ शुक्लपक्ष की अष्टमी को किया जाता है । कहते हैं कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म पितामह ने अपने शरीर को छोड़ा था। इसलिए यह दिन उनका निर्वाण दिन है। जो भीमाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह के निमित्त तिलों के साथ तर्पण तथा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को संतान की तथा कृष्ण लोक की प्राप्ति होती है।
भीमाष्टमी व्रत पूजा विधि | Bhishma Ashtami Puja Vidhi
Bhishma Ashtami Puja Vidhi : संभवतः इस दिन प्रात: किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना चाहिए अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं, तो घर में ही शुद्ध जल से स्नान करते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए ।
भीमाष्टमी मंत्र | Bhishma Ashtami Mantra
मंत्र- वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
Bhishma Ashtami Mantra
गंगापुत्राय भीष्माय सर्वदा ब्रह्मचारिणे।।
भीष्म: शान्तनवो वीर: सत्यवादी जितेन्द्रिय:
आभिरभिद्रवाप्नोतु पुत्रपौत्रोचितां क्रियाम्।।
स्नान करते समय पितामह भीष्म के तर्पण के निमित्त हेतु हाथ में तिल, जल इत्यादि लेकर अपसव्य यानी जनेऊ को दाएं कंधे पर धारण कर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ऊपर लिखे मंत्र का जाप करना चाहियें ।
भीमाष्टमी या भीष्म अष्टमी व्रत कथा
Bhishma Ashtami vrat katha : एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते-खेलते गंगा के पार चले गए। लौटते समय नाव पर उनकी भेंट हरिदास केवट की पुत्री मत्स्यगंधा से होती है। वे उसके रूप- लावण्य पर मुग्ध हो जाते हैं। राजा शांतनु हरिदास से अपने लिए उसका हाथ मांगते हैं। किंतु वह राजा के प्रस्ताव को ठुकरा देता है और कहता है- महाराज आपका ज्येष्ठ पुत्र देवव्रत है। जो राज्य का उत्तराधिकारी है। यदि आप मेरी कन्या के पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा करें, तो मैं तैयार हूं।
शांतनु ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया, परंतु वह मत्स्यगंधा को न भुला सके और उसकी याद में व्याकुल रहने लगे। एक दिन देवव्रत ने उनसे व्याकुलता का कारण पूछा। सारा वृत्तांत ज्ञात होने पर देवव्रत स्वयं केवट हरिदास के पास गए और गंगाजल हाथ में लेकर शपथ ली कि मैं आजीवन अविवाहित रहूंगा। इसी कठिन प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म पड़ा। राजा शांतनु ने देवव्रत से प्रसन्न होकर उसे इच्छित मृत्यु का वरदान दे दिया।
कौरव – पाण्डव युद्ध में दुर्योधन ने अपनी हार होती देख भीष्म पितामह पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि आप अधूरे मन से युद्ध कर रहे हैं। आपका मन पांडवों की तरफ है। भीष्म यह सुनकर बड़े दुखी हुए। और एक और प्रतिज्ञा लें ली
‘आज जौ हरिहिं न शस्त्र गहाऊं’ । ऐसी प्रतिज्ञा की ।
bhishma pratigya
तत्पश्चात घमासान युद्ध हुआ। भगवान श्री कृष्ण को भीष्म प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र को हाथ में उठाना पड़ा। भगवान श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा थी कि मैं युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊंगा। श्री कृष्ण की प्रतिज्ञा भंग होते ही भीष्म पितामह युद्ध बंद करके शरशय्या पर लेट गए।
महाभारत के युद्ध की समाप्ति पर जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तब भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया। इसलिए उनकी पावन स्मृति में उत्सव के रूप में माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीमाष्टमी के रूप मे मनाई जाती है।
भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था।
भीष्म पितामह शांतनु की पटरानी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे ।
हिंदू पंचाग के अनुसार, इस बार Bhishma Ashtami माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को 29 जनवरी दिन रविवार को है ।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ :- तिथि 28 जनवरी दिन शनिवार को सुबह 08:43 से प्रारंभ हो जाएगी ।
अष्टमी तिथि समाप्त :- 29 जनवरी दिन रविवार को सुबह 9 बजे समाप्त होगी ।
विशेस जानकारी :- 28 जनवरी 2023 को पूरे दिन ही अष्टमी तिथि रहेगी, इसलिए इस दिन भीष्म अष्टमी का व्रत करने का महत्त्व है । इसके अलावा इस दिन अश्विनी नक्षत्र होने से सौम्य नाम का शुभ योग भी बन रहा है जिससे सारा दिन शुभ योग रहेगा. साथ ही, इस दिन भरणी और साध्य जैसे विशेस योग भी रहेंगे ।
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