अमरकंटक से अवतरित होकर पूरे मध्यप्रदेश को अपने प्रेम से सिंचित करने वाली नर्मदा को देवी के रूप में पूजा जाता है। शहडोल जिले में अमरकंटक से निकलकर पश्चिम की ओर 1312 किमी बहती हुई गुजरात के खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में विलीन हो जाती है।
सतपुड़ा और विंध्याचल की पर्वत श्रेणियों के संधि स्थल पर एक छोटे से कुंड के रूप में अवतरित इस नदी का स्वरूप यात्रा के अंत में समुद्र से मिलने के समय घाट लगभग 24 किमी चौड़ा हो जाता है, परंतु यह भी सत्य है कि हमारे देश में नदियों को केवल बहते हुए जल के रूप में ही नहीं देखा जाता है। वे जीवनदायिनी मां के रूप में पूज्य हैं। नर्मदा को मइया और देवी होने का गौरव है।
पुरातन काल से ऋषि मुनियों की तपस्या स्थली रही है। देश में एकमात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। श्रद्धा लिए पदयात्री पैरों के छालों की परवाह किए बगैर 2600 किमी की यात्रा 3 महीने और 13 दिन में पूरी कर जीवन को धन्य मानते हैं। इन्हें असंख्य जड़ी बूटियों और वृक्षों के बीच से बहती नर्मदा को प्रदेश की जीवनरेखा भी कहा जाता है। सैकड़ों छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई यह नदी कभी इठलाती चलती है, तो कभी शांत बहती है, कहीं सहस्त्रधाराओं में विभाजित हो जाती है। संगमरमरी दूधिया चट्टानों को चीर कर बहता ही देख अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है।
नर्मदा के निर्मल जल में स्नान से जो सुख प्राप्त होता है वह अवर्णनीय है आराम देती है इसी से इसका नाम ‘नर्मदा’ है और चुलबुली शरारती भी है इसलिए ‘रेवा’ कहा है। पुराणों में नर्मदा को शंकरजी की पुत्री कहा है, इसका प्रत्येक कंकर शंकर माना जाता है।
यह प्रदेश की जीवनरेखा तो है ही धार्मिक गतिविधियों के साथ पर्यटन भी बढ़ा है। इसके सुंदर तट बॉलीवुड को भी आकर्षित करते रहे हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के कारण मोहन जोदाड़ो, पैडमैन, दबंग थ्री जैसी बड़ी फिल्में यहां शूट हुई हैं।