Friday, June 9, 2023

संतान सप्तमी व्रत कथा|santan saptami 2020|santan saptami vrat katha

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Santan saptami vrat2020 :– संतान सप्तमी का व्रत संतान सुख की प्राप्ति एवं जीवन के सभी प्रकार के सुखो को देने वाला है, संतान सप्तमी व्रत में भगवान् शंकर माता पार्वती एवं गणेश पूजन का विधान है उनका पूजन षोडशोपचार विधि से होना चाहिए नीचे santan saptami vrat 2020 की सम्पूर्ण विधि दी गई है




Vrat katha SRDnews

Santan saptmi vrat katha ,vrat katha



संतान सप्तमी व्रत कथा|santan saptami 2020|santan saptami vrat katha





संतान सप्तमी व्रत कथा :- एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान से कहा कि हे प्रभो! कोई ऐसा उत्तम व्रत बताइये, जिसके प्रभाव से मनुष्यों के सांसारिक दुःख क्लेश दूर होकर पुत्र एवं पौत्रवान हो । यह सुनकर भगवान बोले-हे राजन्! तुमने बड़ा उत्तम प्रश्न किया है । मैं तुमको एक पौराणिक इतिहास सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।





एक समय लोमश ऋषि ब्रजराज मथुरापुरी में वसुदेव, देवकी के घर गये। ऋषिराज को आया हुआ देखकर दोनों अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा उनको उत्तम आसन पर बैठाकर उनकी अनेक प्रकार से वंदना तथा सत्कार किया । फिर मुनि के चरणोदक से अपने घर तथा शरीर तो पवित्र किया। मुनि प्रसन्न होकर उनको कथा सुनाने लगे। कथा के कहते-कहते लोमश ऋषि ने कहा कि-हे देवकी! दुष्ट दुराचारी पापी कंस ने तुम्हारे कई पुत्र मार डाले हैं। जिसके कारण तुम्हारा मन अत्यन्त दुखी है। इसी प्रकार राजा की चन्द्रमुखी भी दुःखी रहा करती थी । किन्तु उसने संतान सप्तमी का व्रत विधि विधान सहित किया था जिसके प्रताप से उसको संतान सुख प्राप्त हुआ । यह सुनकर देवकी ने हाथ जोड़कर मुनि से कहा-हे ऋषि राज कृपा करके रानी चंद्रमुखी का सम्पूर्ण वृतांत तथा इस व्रत का विधान विस्तार सहित मुझे बताइए, जिससे मैं भी इस दुख से छुटकारा पाऊँ ।





लोमश ऋषि ने कहा-हे देवकी! अयोध्या के राजा नाखुश थे, उनकी पत्नी चन्द्रमुखी अत्यन्त सुन्दर थी । उसी नगर में विष्णु गुप्त नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम भद्रमुखी था । वह भी अत्यन्त सुन्दरी थी । रानी और ब्राह्मणी में अत्यन्त प्रेम था । एक दिन वे दोनों सरयू नदी में स्नान करने निमित्त गई । वहाँ उन्होंने देखा कि अन्य बहुत सी स्त्रियाँ सरयू नदी में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहनकर एक मंडप में शंकर एवं पार्वती की मूर्ति स्थापित करके उनकी पूजा कर रही थीं । रानी और ब्राह्मणी ने यह देखकर उन स्त्रियों से पूछा कि बहनों तुम यह किस देवता काऔर किस कारण से यह पूजन, व्रत आदि कर रही हो ।





संतान सप्तमी व्रत कथा |santan saptami vrat katha





यह सुनकर उन स्त्रियों ने कहा कि हम संतान सप्तमी का व्रत कर रही हैं और हमने शिव, पार्वती का पूजन चंदन, अक्षत आदि पूर्ण विधि विधान से किया । यह सुनकर रानी और ब्राह्मणी ने भी इस व्रत के करने का मन ही मन संकल्प किया और घर वापस लौट आई । ब्राह्मणी भद्रमुखी तो इस व्रत को नियम पूर्वक करती रही किन्तु रानी चन्द्रमुखी राजमद के कारण कभी इस व्रत को करती, कभी भूल जाती । कुछ समय बाद वह दोनों मर गईं । दूसरे जन्म में रानी बन्दरियाँ और ब्राह्मणी ने मुर्गी की योनि पाई परन्तु ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में भी कुछ नहीं भूली और भगवान शंकर तथा पार्वती जी का ध्यान करती रही । उधर रानी बन्दरियाँ की योनि में भी सब कुछ भूल गई। थोड़े समय के बाद इन दोनों ने यह देह भी त्याग दी ।





इनका तीसरा जन्म मनुष्य योनि में हुआ । ब्राह्मणी ने तो एक ब्राह्मण के यहाँ कन्या के रूप में जन्म लिया तथा रानी ने एक राजा के यहाँ राजकन्या के रूप में जन्म लिया । उस ब्राह्मण ने कन्या का नाम भूषण देवी रखा तथा विवाह योग्य होने पर उसका विवाह गोकुल निवासी अग्नि भील नामक ब्राह्मण से कर दिया । भूषण देवी इतनी सुन्दर थी कि वह आभूषण रहित होते हुए भी अत्यन्त सुन्दर लगती थी । कामदेव की पत्नी रति भी उसके सम्मुख लजाती थी । भूषण देवी के अत्यन्त सुन्दर सर्वगुण सम्पन्न चन्द्रमा के समान धर्मवीर, कर्मनिष्ठ, सुशील स्वभाव वाले आठ पुत्र उत्पन्न हुए । यह सब शिवजी के व्रत का पुनीत फल था । दूसरी ओर शिव विमुख रानी के गर्भ से कोई भी पुत्र नहीं हुआ और वह नि:संतान दुःखी रहने लगी ।





रानी और ब्राह्मण में जो प्रीत पहले जन्म में थी, वह अब भी बनी रही। रानी जब वृद्धावस्था को प्राप्त होने लगी तब उसके एक गूँगा, बहरा तथा बुद्धिहीन अल्पायु वाला एक पुत्र हुआ और वह नौ वर्ष की आयु में इस क्षण भंगुरे संसार को छोड़कर चला गया अब तो रानी पुत्र शोक में अत्यन्त दुःखी हो, व्याकुल रहने लगी। दैवयोग से भूषण देवी ब्राह्मणी रानी के यहाँ अपने सब पुत्रों को लेकर पहुँची। रानी का हाल सुनकर उसे भी बहुत दुख हुआ किन्तु उसमें किसी का वश, कर्म और प्रारब्ध के लिखे को स्वयं ब्रह्मा भी नहीं मिटा सकते हैं । रानी कर्मच्युत भी थी इसी कारण उसे यह दुख देखना पड़ा । इधर रानी उस ब्राह्मणी के इस वैभव और आठ पुत्रों को देखकर उससे मन में ईर्ष्या करने लगी तथा उसके मन में पाप उत्पन्न हुआ। उस ब्राह्मणी ने रानी का संताप दूर करने के निर्मित अपने आठों पुत्रों को रानी के पास छोड़ दिया । रानी ने पाप के वशीभूत होकर उन ब्राह्मण पुत्रों की हत्या के विचार से लड्डू में विष (जहर ) मिलाकर उनको भोजन करा दिया परन्तु भगवान शंकर की कृपा से एक भी बालक की मृत्यु न हुई ।





संतान सप्तमी व्रत कथा|santan saptami 2020|santan saptami vrat katha





यह देखकर तो रानी अत्यन्त ही आश्चर्यचकित हो गई । रानी ने इस रहस्य का पता लगाने की मन में ठान ली। भगवान की पूजा सेवा से निवृत्त होकर जब भूषण देवी आई तो रानी ने उससे कहा कि मैंने तेरे पुत्रों को मारने के लिए इनको जहर मिलाकर लड्डू खिला दिये किन्तु इनमें से एक भी नहीं मरा । तूने ऐसा कौन-सा दान, पुण्य व्रत किया है जिसके कारण तेरे पुत्र भी नहीं मरे और तू नित्य नये सुख भोग रही है, तू बड़ी सौभाग्यवती है । तू इसका भेद मुझे निष्कपट होकर समझा । मैं तेरी बड़ी ऋणी रहूंगी । रानी के ऐसे दीन वचन सुनकर भूषण ब्राह्मणी कहने लगी-हे रानी! सुनो तुमको तीन जन्म का हाल कहती हूँ सो ध्यानपूर्वक सुनना । पहले जन्म में तुम राजा नाखुष की पत्नी थीं और तुम्हारा नाम चंद्रमुखी था और मैं ब्राह्मणी थी । तुम अयोध्या में रहती थीं और मेरी तुम्हारी बड़ी प्रीति थी ।






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एक दिन हम दोनों सरयू नदी में स्नान करने लगीं और दूसरी लोगों को सन्तान सप्तमी का उपवास शिवजी का पूजन अर्चन करते देखकर हमने तुमने भी इस उत्तम व्रत को करने की प्रतिज्ञा की थी । तुम तो राजमद के कारण सब भूल गई और झूठ बोलने का तुमको दोष लगा, जिससे तुम आज भी भोग रही हो, मैंने इस व्रत को आचार-विचार सहित नियमपूर्वक सदैव किया और आज भी करती हूँ । दूसरे जन्म में तुमने बन्दरियाँ का जन्म लिया तथा मुझे मुर्गी की योनि मिली । भगवान शंकर की कृपा से इस व्रत के प्रभाव तथा भगवान नाम को इस जन्म में भी न भूली और निरन्तर उस व्रत को नियम पूर्वक करती रही । तुम अपने इस संकल्प को इस जन्म में भी भूल गईं । मैं समझती हूँ कि तुम्हारे ऊपर यह जो भारी संकट है, उसका एक मात्र ही कारण है और दूसरा कोई इसका कारण नहीं हो सकता । इसलिए मैं तो कहती हूँ कि आप सब भी इस संतान सप्तमी के व्रत को करिये जिससे तुम्हारा यह संकट दूर हो जावे । लोमश ऋषि ने कहा कि हे भूषण देवी ब्राह्मणी के मुख से अपने पूर्व जन्म की कथा तथा व्रत संकल्प इत्यादि सुनकर रानी की पुरानी बातें याद आ गईं और पश्चाताप करने लगी तथा रानी भूषण देवी ब्राह्मणी के चरणों में पड़कर क्षमा याचना करने लगी ।





भगवान शंकर पार्वती की अपार महिमा के गीत गाने लगी उस दिन से रानी ने नियमानुसार संतान सप्तमी का व्रत किया जिसके प्रभाव से रानी को संतान सुख भी मिला तथा सम्पूर्ण सुख भोगकर रानी स्वर्ग लोक को गई । भगवान शंकर के व्रत का ऐसा प्रभाव है कि पथ भ्रष्ट मनुष्य भी अपने पथ पर अग्रसर हो जाता है और अन्त में ऐश्वर्य भोगकर मोक्ष पाता है । लोमश ऋषि ने फिर कहा कि-हे देवकी, इसलिए मैं तुमसे भी कहता हूँ कि तुम भी इस व्रत को करने का दढ़ संकल्प अपने मन में करो तो तुमको भी संतान सुख प्राप्त होगा ।





संतान सप्तमी व्रत विधि | santan saptami vrat vidhi





संतान सप्तमी व्रत विधि :- इतना सुनकर देवकी हाथ जोड़कर लोमश ऋषि से पूछने लगी-हे ऋषिराज! मैं इस पुनीत व्रत को अवश्य करेंगे, किन्तु आप इस कल्याणकारी एवं संतान सुख देने वाले व्रत का नियम, विधि-विधान आदि विस्तार से समझाइयें यह सुन ऋषि बोले-हे देवकी! यह पुनीत व्रत भादो के महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन किया जाता है । उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी नदी अथवा कुएँ के पवित्र जल में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहनना चाहिए फिर शंकर भगवान तथा जगदम्बा पार्वती जी की मूर्ति को स्थापित करे ।





इन प्रतिमाओं के सम्मुख सोने, चांदी के तारों का अथवा रेशम का एक गंडा बनावें । उस गंडे में सात गाँठें लगानी चाहिए । इस गंडे की धूप, दीप अष्टगंध से पूजा करके अपने हाथ में बाँधे और भगवान शंकर से अपनी कामना सफल होने की शुद्ध भाव से प्रार्थना करें । तदान्तर सात पुआ बनाकर भगवान को भोग लगावें और सात ही पुआ एवं यथा शक्ति सोने अथवा चांदी की एक अंगूठी बनवा कर इन सबको एक तांबे के पात्र में रखकर और उनका षोडशोपचार विधि से पूजन करके किसी सदाचार, धर्मनिष्ठ, सत्य पात्र ब्राह्मण को दान में देवे उसके बाद सात ही पुआ स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें । इस प्रकार इस व्रत का परायण करना चाहिए। प्रति मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हे देवकी यदि इस व्रत को इस प्रकार नियमपूर्वक करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और भाग्यशाली संतान उत्पन्न होती है तथा अन्त में स्वर्गलोक को प्राप्त होते है ।





हे देवकी ! मैंने तुमको संतान सप्तमी का व्रत सम्पूर्ण विधान विस्तार सहित वर्णन कर दिया है। उसको अब तुम नियमपूर्वक करो । जिससे तुमको उत्तम संतान प्राप्त होगी । इतनी कथा कहकर भगवान आनंद कंद श्री कृष्ण ने परमावतार युधिष्ठिर से कहा कि श्री लोमश ऋषि इस प्रकार हमारी माता को शिक्षा देकर चले गये ऋषि के कथानुसार हमारी माता देवकी ने इस व्रत को नियमानुसार किया, जिसके प्रभाव से हम उत्पन्न हुए हैं । यह विशेषतः स्त्रियों का तो कल्याणकारी है परन्त परुषों को भी समान रूप से चतुर्थ मास व्रत कथा कल्याण दायक है । संतान सुख देने वाला यह पापों का नाश करने वाला यह उत्तम व्रत है जिसे स्वयं भी करे तथा दूसरों को करावें । जो कोई नियमपूर्वक इस व्रत को करता और भगवान शंकर एवं पार्वती की सच्चे मन से अराधना करके अन्त में स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।





संतान सप्तमी व्रत कथा|santan saptami 2020|santan saptami vrat katha





।। इति श्री ॥





आरती शिव जी की | shankar ji ki aarti | om jai shiv om kara





आरती श्री शंकर जी की





शीश गंग अर्धंग पार्वती सदा विराजत कैलाशी।
नन्दी भृंगी नृत्य करत है, ध्यान सुर सुखरासी।।
शीतल मंद सुगंध पवन वह बैठे हैं, शिव अदिनाशी ।
करत गान गन्धर्व सप्त स्वर राग रागनी मधुरासी ।
यक्ष रक्ष भैरव जहं डोलत बोलत है, वन के वासी ।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर भ्रमर करत पुजारी ॥









ऋषि पंचमी व्रत कथा|Rishi Panchami vrat katha| rishi panchami 2020


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