फिर वह डोरा लक्ष्मी जी को अर्पण करें और अपने सीधे हाथ में बांध लेना चाहिए आइये जानते है श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा ( mahalaxmi sampurn vrat katha ) विस्तार से
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi sampurn vrat katha
व्रत करने वाली देवी किसी ब्राह्मण से श्री महालक्ष्मी व्रत की पूजन करा के व्रत की यह पुनीत कथा भावना से श्रवण करें तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा से संतुष्ट कर अपना व्रत खोले .
श्री गणेशाय नमः एक समय धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से बोले है पुरुषोत्तम खोए हुए मान सम्मान की पुनः प्राप्ति कराने वाला और पुत्र आयु सर्वेश्वर तथा मनोवांछित फल को देने वाला कोई एक व्रतांत मुझ से कहिए । श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर से कहा सतयुग के आरंभ में जब दैत्यराज व्रत्तासुर ने देवताओं के स्वर्ग लोक में प्रवेश किया था तब यही प्रश्न इंद्र ने नारद मुनि से किया था ।
इंद्र के पूछने पर नारद जी ने तब इस प्रकार वर्णन किया- पूर्व काल में पुरंदरपुर नाम का एक अत्यंत रमणीय नगर था ।उसकी भूमि रत्नों से युक्त थी, और पर्वत भी रत्नों से भरे हुए थे , वहां की स्त्रियां मृगलोचना थी । वह नगर अर्थ , काम,मोक्ष इन चारों पुरुषार्थ से युक्त होने के कारण संसार भर में प्रशिद्ध था । नगर की कारीगरी पर विश्वकर्मा भी अपना सिर हिलाया करते थे । उस नगर में मंगलसेन नाम का राजा राज्य करता था । उसके दो चिल्ल देवी (chill devi ) और चोल देवी (chol devi )नाम की रूपवती रानियां थी ।
श्री महा लक्ष्मी जी की व्रत कथा
एक समय राजा मंगल अपनी रानी चोलदेवी (chol devi )के साथ मकान के शिखर पर बैठा था । वहां से उनकी दृष्टि समुद्र के जल से घिरे हुए एक स्थान पर पड़ी उस जगह को देखकर राजा अति प्रसन्न हुआ और अपनी रानी से बोला है चंचला कि मैं उस स्थान पर तुम्हारे लिए एक परम मनोहर उद्यान बनवाऊंगा देखना उस उद्यान इंद्र के नंदनवन को भी लजाने वाला होगा ।
राजा के ऐसे वाक्य को सुनकर रानी ने कहा हे कांत ऐसा ही कीजिए । राजा ने अपने विचार के अनुसार उसी स्थान पर एक सुंदर बगीचा बनवा दिया वह बगीचा थोड़े दिनों में ही अनेक वृक्ष लता फूलों और पक्षी गणों से संपन्न हो गया । एक समय उस उद्यान में मेघ तुल्य काला और रक्त वर्ण तथा चंचल नेत्रों से युक्त शूकर घुस आया । उसने आकर वृक्षों को तोड़ डाला और उस उद्यान को चौपट कर दिया। यही नहीं उस शूकर ने बगीचे के कई रख वालों को भी मार डाला ।
तब उद्यान के रक्षक उसके भय से भयभीत होकर राजा के पास गए और सब हाल कह सुनाया । अपने परम रम्य उद्यान के उजड़ने की बात सुनकर राजा के नेत्र क्रोध से लाल हो गए राजा ने अपनी सेना को आज्ञा दी कि शीघ्र ही जाकर उस शूकर को मार डालो ।
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi sampurn vrat katha
यही नहीं राजा स्वयं भी एक मतवाले हाथी पर सवार होकर उद्यान की ओर चल पड़ा । उसकी सेना पृथ्वी को हिलाती तथा रथो की शीघ्र गति से उत्पन्न पवन से पर्वतों को कपा रही थी शब्द उच्चारण से दिशाओं को गूंजाता हुआ राजा बोला यदि किसी सिपाही के बगल से यह शूकर निकल जाएगा तो मैं उस सिपाही का सिर शत्रु की भांति काट डालूंगा । राजा के ऐसे वचन सुनकर वह शूकर जिस मार्ग में राजा स्वयं खड़ा था उसी मार्ग से मनुष्यों को विदीर्ण करता हुआ निकल गया ।
राजा अपने घोड़े को मारता ही रह गया । राजा लज्जा से प्रेरित होकर उस शूकर का पीछा करते-करते सिंह बाघो से युक्त घोर वन में जा निकला ।निदान शूकर से मुठभेड़ हुई और राजा ने अपने बाण से उसे भेद दिया ।वाण के लगते ही शूकर अपने शरीर को छोड़कर दिव्य गंधर्व रूप में आ गया और विमान पर चढ़कर स्वर्ग को जाने लगा ।
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi sampurn vrat katha
गंधर्व ने राजा से कहा- ” है महिपाल ! आप का कल्याण हो ।” आपने मुझे शूकर योनि से छुड़ाए बड़ी कृपा कि मैं चित्ररथ नाम का गंधर्व हूं । एक समय जब ब्रह्मा जी देवताओं के बीच बैठे हुए मेरा गायन सुन रहे थे, तब मुझसे ताल स्वर की भूल हो जाने से वे रुष्ट हो गए थे । उन्होंने रुष्ट होकर मुझे शाप दिया था तू पृथ्वी पर शूकर होगा जिस समय राजा मंगल तुझे अपने हाथों से मारेगा तब तेरी शूकर योनि से मुक्ति होगी तो आज वह श्राप आज पूरा हुआ है ।हे राजन ! मैं आपके कृत्य से प्रसन्न हुआ । आप भविष्य में महालक्ष्मी व्रत करके सार्व भौम राजा हो जाएंगे ऐसा मेरा आशीर्वाद है ।
नारद जी कहने लगे और वह चित्ररथ गंधर्व राजा मंगल को ऐसा आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गया राजा जो ही वहां से अपने नगर के लिए चलने को हुआ त्योंही उसे एक ब्राह्मण दिखाई दिया । राजा ने ब्राह्मण से प्रश्न किया कि हे देवता आप कौन हैं इस पर ब्राह्मण ने उत्तर दिया है राजन में आपके ही राज्य का एक नागरिक हूं । आप इस समय शांत दिखाई देते हैं कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ।
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi vrat katha
राजा ने तब ब्राह्मण से कहा कि वह उसके घोड़े को किसी निकट के जलाशय से पानी पिला लाये ब्राह्मण ने ऐसा ही किया वह घोड़े की पीठ पर सवार होकर जलाशय की ओर जाता है ।बटुक जलाशय के निकट पहुंच कर देखता है कि वहां दिव्य वस्त्र और अलंकार पहने हुए बहुत सी स्त्रियाँ कोई कथा कह रही है ।तदनंतर वह बटु भी उन स्त्रियों के पास जाकर अपना परिचय देकर नाना प्रकार के प्रश्न कहने लगा- हे स्त्रियों ! आप यहां भक्ति भाव से क्या कर रहे हैं ? इसकी क्या विधि है ?
इसके करने से क्या फल होता है ? इस पर देवीयो ने तरस खाकर उस ब्राम्हण से कहा कि आप भी एकाग्र चित होकर कथा सुने ।यह श्री महालक्ष्मी जी की पूजा हो रही है और हम जो कथा कह रही हैं वह उन्हीं के व्रत की कथा है।
इस व्रत के करने से हर प्रकार की संपत्ति प्राप्त हो जाती है और अपना खोया हुआ यश भी प्राप्त होता है । इसमें कोई संदेश ना करें । इस प्रकार बटुक को उन देवियों ने वृत्तांत कह सुनाया ।बटुक ने घोड़े को जल पिलाया और राजा के लिए कमल के पत्तों में जल लेकर वहां से लौटा।ब्राह्मण ने लौट कर सारा किस्सा राजा को सुनाया और वही व्रत की कथा राजा से कह सुनाई । महालक्ष्मी का पूजन तथा व्रत करके राजा अपने समस्त ऐश्वर्य का भागी बन कर वन से उस बटुक ब्राम्हण के साथ ही अपनी राजधानी को लौट आया ।
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi sampurn vrat katha
सबसे पहले राजा अपने मित्र ब्राह्मणों के साथ अपनी बड़ी रानी चोल देवी के महल में जाता है ।रानी ने जब राजा के दाहिने हाथ में व्रत का बंधा हुआ डोरा देखा तो वह राजा से रुष्ट हो जाती है । वन में यह डोरा किसी अन्य स्त्री ने राजा को बांध दिया है ऐसा विचार कर चोलदेवी ने राजा के हाथ से वह डोरा तोड़कर धरती पर फेंक दिया उसी समय छोटी रानी चिल्लदेवी भी वहां आ पहुचती है वह उस डोरे को उठा लेती है और पास ही खड़े बटु ब्राम्हण से उस डोरे का संपूर्ण रहस्य जान लेती है ।
चिल्ल रानी चोल रानी कथा
दूसरे वर्ष जब महालक्ष्मी व्रत का दिन आता है तब राजा अपने हाथ के डोरे को देखते हैं और चिल्लरानी के महल में पूजा आदि का संदेश पाकर पहुंच जाते हैं वह इस प्रकार चोलरानी से नष्ट हो जाते हैं और चिल्ल रानी से प्रसन्न हो जाते हैं पूजन के दिन ही लक्ष्मी जी चोल रानी के महल में एक वृद्धा का रूप धारण कर जा पहुंचती है वहां चोलरानी लक्ष्मी जी का अनादर करती है । तब अप्रसन्न होकर लक्ष्मी जी चोल रानी को श्राप देती है कि जा तेरा मुख शूकरी जैसा हो जाएगा । जब तू अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाएगी तब वहां के कृत्य से तू अपना स्वरूप प्राप्त करेगी ।
इसके बाद लक्ष्मी जी चिल्ल रानी के महल में गई। वहां रानी ने उनका बड़ा आदर किया । प्रसन्न होकर लक्ष्मी जी ने चिल्ल रानी से कहा है रानी मैं तेरे पूजन तथा आदर सत्कार से प्रसन्न हुई हूं तू वर मांग तब रानी ने प्रार्थना करते हुए कहा हे देवी जो भी तुम्हारे इस व्रत को करें उसके घर में तुम सदा निवास किया करो जो आपके इस व्रत की कथा को श्रवण करें और पढ़े उसकी आप सभी कामनाएं पूरी किया करो । मैं आपसे बस यही वरदान चाहती हूं ।
श्री महालक्ष्मी सम्पूर्ण व्रत कथा | mahalaxmi sampurn vrat katha
लक्ष्मी जी चिल्ल रानी को वरदान देकर अंतर्ध्यान हो जाती है। उसी दिन चील रानी चिल्ल रानी के द्वारपालो द्वारा अपने शूकरी जैसे मुख हो जाने के कारण अपमानित होती है । तब चोल रानी अपना मुंह दर्पण में देखती है और अपने किए पर पछताती है।लक्ष्मी जी के श्राप के अनुसार चोल रानी अंगिरा ऋषि के आश्रम में जाती है । वहां ऋषि के कहने के अनुसार वह महालक्ष्मी व्रत करती है और अपना खोया हुआ स्वरूप प्राप्त करती है ।
ऋषि के आग्रह से राजा मंगल अपनी रानी को ग्रहण करता है। इस प्रकार राजा मंगलसेन अपनी दोनों रानियों सहित बहुत वर्षों तक राज्य सुख भोगता रहता है । वह अपने समय का चक्रवर्ती राजा माना जाने लगा । उसका बटु ब्राम्हण ही उसके विशाल राज्य का मंत्री बना । राजा मंगलसेन अपनी रानियों के निरंतर इसके करते रहने के कारण अंत में स्वर्ग को गया और आकाश में उसे श्रवण नक्षत्र का रूप प्राप्त हुआ है ।
क्या 28 साल की उम्र के बाद मांगलिक दोष हो जाता है खत्म ? manglik dosh
top secret of success | personality devlopment in hindi | कामयाबी के नुक्से
|