रामजानकी का रथ निकाल कर पैसा एकत्र किया, गंगाजल बेचा, गाय की पूंछ पकड़कर चुनावी लाभ उठाया और अब वह मन्दिरों को नष्ट करने पर उतारू है। जब शास्त्रीय मर्यादा ही नष्ट हो जाएगी तो हिन्दू धर्म से शून्य या उसका विरोधी हिन्दू कैसा होगा? अभी तक किसी हिन्दू कल्पित धर्मसंसद के नाम पर हिन्दूधर्म की व्यवस्थाओं की अवहेलना नहीं की थी। विहिप ने धर्मसंसद का गठन किया जिसकी घोषणाओं को वह वेद, धर्मशास्त्र, रामायण- महाभारत से भी ऊपर मानती है।
अर्थात् अपने नामजद धर्मसंसद् के माध्यम से वह स्वयं अपने किस्म का हिन्दू धर्म बना रही हैं। इस स्थिति में आवश्यक है कि उससे अलग हट कर हम श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का निर्माण शुरू करे अन्यथा विहिप अपनी राजनीतिक सौदेबाजी में मन्दिर मर्यादा समाप्त कर देगी।
विहिप 3 वर्षों तक हिन्दू जनता को गुमराह करती रही है। उसके सारे कार्यक्रम दिल्ली, लखनऊ एवं देश के अन्य भागों में होते रहे लेकिन मन्दिर पर कभी नहीं पहुँची या इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से कोई काम नहीं किया। इसने ईटा पूजैया का जो भद्दा रूप प्रस्तुत किया उससे हिन्दू धर्म की मर्यादा ही भंग हुई और दुनियों में हिन्दू धर्म का रूप विकृत ढंग से प्रस्तुत हुआ इन तमाम कारणों से श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर पुनरुद्धार समिति के तत्वाधान में हमने पुनरुद्धार कार्य प्रारम्भ किया।
देश के विद्वानों, धर्माचार्यो, हिन्दुओं की प्रतिनिधि संस्थाओं आदि से विमर्श कर हमने शिलान्यास का निश्चय किया। ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के मान्य विद्वानों ने परामर्श दिया कि 7 मई 1990 को शिलान्यास के लिए शुभ मुहूर्त है। इसी आधार पर हमने 7 मई 1990 को शिलान्यास की तिथि घोषित की। देश भर की हिन्दू जनता ने बड़े ही उत्साह के साथ इसका स्वागत किया।
देश भर से सहयोग के पत्र आने लगे। जहाँ भी हम गये लोगों ने उल्लास में कहा कि हिन्दू धर्म के विपरीत मन्दिर का कार्य नही होना चाहिए, शंकराचार्य के रूप में मन्दिर मर्यादा की स्थापना की आपने जो घोषणा किया है, हम सभी उसमें लगना अपना कर्तव्य मानते है। हम लोगों ने शिलान्यास के नाम पर न तो चन्द्रा एकत्र किया, न जुलूस निकाला और न तो उत्तेजनात्मक भाषण किया। हमारे किसी भी कार्यकर्ता ने मुसलमानों के असम्मान में एक भी अपशब्द प्रयोग नहीं किया।
प्रसन्नता की बात है कि हमारे इस कार्यक्रम में बौद्ध, जैनियों, सिख आदि के -साथ मुसलमानो ने भी सम्पर्क किया और सहयोग की बात उठायी। हमारे शिलान्यास कार्यक्रम का किसी मुसलमान संगठन ने वक्तव्य द्वारा विरोध नहीं किया। उस समय यह अनुभव हुआ कि यदि साम्प्रदायिक विषवमन हुआ होता तो मंदिर निर्माण परस्पर सौहाद्र पूर्ण वातावरण में अवश्य हो जाता।
‘विलक्षण अनुभव हुआ।’
हमारा निश्चय था कि हमें शिलान्यास कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर ही करना चाहिए इसके लिए हमने अयोध्या के महात्माओं की समिति बनायी और उन्होंने बड़े ही उत्साह के साथ कार्य किया। ज्ञात हुआ कि स्वयं अयोध्या के महात्मा विहिप के कार्यों से छुब्ध रहे हैं। काशी एवं प्रयाग के विद्वानों के परामर्श पर शिलान्यास की सारी विधि निश्चित की गयी।
इसी उद्देश्य से हमने अयोध्या से जुड़े कुछ जिलों में जनसम्पर्क करना चाहा। जनसम्पर्क करते हुए हम जा रहे थे कि आजमगढ़ जिले में मुझे कुछ भक्तों के साथ 1मई 1990 को गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ्तारी की प्रतिक्रिया | Shankaracharya’s arrest
मेरी गिरफ्तारी महान् षड्यंत्र के तहत हुई। इससे कुछ ऐसे तथ्य सामने आये जो देश के हिन्दुओं के लिए महत्वपूर्ण है। इनमें हम कुछ बातों की ओर (shankaracharya ji ki kahani ) ध्यान दिला रहे हैं….
- 1. विहिप यदि शिलान्यास की घोषणा करती है तो राज्य और केन्द्र की सरकारे उसके साथ वार्ता करती है। जिसका हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं उसे हिन्दुओं का प्रतिनिधि मानती है।
- 2. मेरी पूर्व घोषणा के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार या केन्द्र सरकार ने न तो वार्ता करने की पहल भी न तो समस्या के समाधान के लिए बातचीत अर्थात् मन्दिर निर्माण यदि हिन्दू धर्म के अनुसार होता है और उसका नेतृत्व हिन्दू धर्माचार्य करता है तो यह वर्तमान सरकार के लिए दुःख का विषय है। वर्तमान सरकार साम्प्रदायिक लोगों को अहमियत देकर साम्प्रदायिकता बढ़ाना अपनी राजनीति के लिए आवश्यक समझती है, लेकिन साम्प्रदायिकता के विपरीत हिन्दू धर्म का धर्माचार्य यदि सामने आता है तो उसे शर्मनाक तरीके से गिरफ्तार किया जाता है।
- 3. शिलान्यास की तिथि और स्थान पर पहुँचे बिना एक सप्ताह पूर्व की मुझपर शान्ति भंग की आशंका की बात आजमगढ़ में ही गढ़ ली जाती है, जबकि मेरे शिलान्यास कार्यक्रम से न कहीं टकराव आया, न हिंसक वारदाते हुई। इस स्थिति में मेरी गिरफ्तारी का कोई औचित्य नहीं उठता।
- 4. यदि गैर हिन्दू धर्माचार्य राष्ट्रविरोधी आतंकवादी बयान देता है या काम करता है तो देश का प्रधानमन्त्री उसके घर जाकर बात करता है। ऐसे लोगो के निर्देशन पर मन्त्रिमण्डलों का गठन होता है। यदि सर्वोच्व हिन्दू धर्माचार्य हिन्दू धर्म एवं उसकी मर्यादा की स्थापना की बात करता है तो उस पर घृणित आरोप लगाकर गिरफ्तार किया जाता है।
- 5. गिरफ्तारी का तरीका निहायत शर्मनाक था। रात्रि में पुलिस द्वारा shankaracharya swami swaroopanand ji की कार रोक दी गयी। पास में सामान्य कान्स्टेबल स्तर का आदमी आया और आदेश दिया कि मैं मोटर से उतर उनके पुलिस आफीसर के पास चलू और उनसे बात करूँ। मैंने इसे अशिष्टता मान अस्वीकार कर दिया तो पुनः दरोगा और अंततः एस. पी. मेरे पास आये। मैंने पुलिस अधीक्षक से पूछा कि शंकराचार्य के साथ क्या इसी किस्म का व्यवहार किया जाता है तो इसका जवाब बेहूदे ढंग से दिया गया। न मुझे गिरफ्तारी का कारण बताया गया और न कोई कागजात दिये गये।
रातभर मुझे पुलिस के घेरे में कार द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान घुमाया जाता रहा। जौनपुर में मैने चाहा कि मुझे पूजन कर लेने दिया जाय तो उसकी भी अनुमति नहीं दी गयी। अन्ततः भोर में मुझे चुनार के किले में पहुँचाया गया और उस कमरे में रखा गया जिसमें युद्धापराधी रखे जाते रहे है।
चुनार किले में पहुँचने पर पहले से तैनात किये गये पुलिस कर्मी यह जानकर, कि शंकराचार्य गिरफ्तार कर लें आये गये है, वे सभी हतप्रभ रह गये। उनके अनुसार उनकी ड्यूटी यह बताकर लगाई गयी थी की कोई खूंखार आतंकवादी बंदी लाया जाने वाला है।
- 6. घृणित आरोप मेरे ऊपर लगाया गया कि फूलपुर (आजमगढ़) की एक सभा में मैंने भाषण किया कि मुसलमान देश द्रोही है और उन्हें हिदुस्तान से निकाल दिया जाय।
गड़ी गयी एफ. आई. आर. में लिखा गया है कि ऐसा उत्तेजनात्मक भाषण देने पर मुस्लिम समुदाय के लोग उत्तेजित होकर सड़क पर एकत्रित होने लगे। शान्ति भंग की आशंका देख स्थानीय पुलिस ने मुझे ऐसा उत्तेजक भाषण देने से रोका, लेकिन मेरे न मानने और उत्तेजक भाषण जारी रखने पर मुझे गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके विपरीत वस्तु-स्थिति यह थी कि मुझे फूलपुर पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही गिरफ्तार किया जा चुका था और फूलपुर में भक्तजन स्वागत की तैयारी के साथ देर रात तक मेरी प्रतीक्षा ही करते रह गये थे। फूलपुर के लोगों को बाद में जब एफ. आई. आर. का ज्ञान हुआ तो शंकराचार्य की गिरफ्तारी के लिए सफेद झूठ गढ़े जाने पर उन्हें बेहद क्षोभ हुआ और वहीं के प्रतिष्ठित नागरिकों ने उत्तर प्रदेश सरकार को प्रतिवेदन भेजकर पूँछा कि शंकराचार्य महाराज तो फूलपुर पहुँचे ही नहीं तो उन पर उत्तेजक भाषण का आरोप कैसे मढ़ा गया।
- 7. चुनार में जहाँ हमे रखा गया न तो वहाँ सफाई थी न पानी की व्यवस्था। रोशनी और बिजली का तो सवाल ही नहीं था। बाद में एक जनरेटर लगाया गया वह भी वर्तमान सरकार के समान ही था। उसके बेहद शोर एवं धुएँ के बीच पूजन एवं ध्यान भी दुष्कर हो गया था। मुझसे मिलने वालों पर इतना कड़ा प्रतिबन्ध था कि पत्रकार भी नहीं मिल सकते थे। हमारा वकील भी मुझसे तब मिल पाया जब सर्वोच्च न्यायालय का आदेश हुआ।
- 8. वर्तमान सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हिन्दू धर्माचार्य के लिए भारत का संविधान नहीं है। यदि वह अपनी धार्मिक मर्यादा के लिए कार्य करना चाहे तो उसे एक शातिर अपराधी की तरह गिरफ्तार किया जाएगा और एक युद्धबन्दी की भांति रखा जाएगा। उसे न्याय पाने का कोई हक नहीं है। उसे सामान्य न्यायिक अधिकारों से वंचित कर तपती पहाड़ियों के सर्व सुविधाविहीन स्थान पर रखा जाएगा।
- 9. 80 करोड़ हिन्दुओं के सर्वोच्च धर्माचार्य को सामान्य पुलिस अधिकारी कॉन्टेबल से इस प्रकार बुलाता है जैसे छोटे स्तर का घटिया अपराधी बुलाया जाय। हिंसक अपराध करने वाले अपराधियों को मुख्य मन्त्री और प्रधान मंत्री माथा टेकने मे राष्ट्रीय एकता देखते है और हिन्दू धर्मचार्य के साथ इस तरह के अपमानजनक व्यवहार को प्रगतिशील मानते है।
- 10. गिरफ्तारी से छोड़ने की भी शर्तें लाजवाब रही। पहले तो आतंकवादियों की तरह मुझे रिमांड पर रखा जाता रहा और उसकी तिथिया बढ़ायी जाती रही। रिमाण्ड की तिथि एक सप्ताह के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने और बढ़वाया। जब पूरे देश में गिरफ्तारी की गम्भीर प्रतिक्रिया होने लगी तो केन्द्रिय सरकार के दबाव पर उत्तर प्रदेश सरकार बीच में ही छोड़ने के लिए बाध्य हो गयी। इसके लिए हमारे सामने शर्तनामा रखा गया कि उस पर दस्तखत कर दे तब छोड़े जाएँगे। हमने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद मुझसे जमानत मुचलका माँगा गया।
शंकराचार्य से जमानत मुचलका!
जाहिर है कि मैंने अस्वीकार कर दिया। हमें कहा गया कि जेल से बाहर जाने पर उत्तर प्रदेश में न रहे जिसे हमने अस्वीकार कर दिया।
- 11. मेरी गिरफ्तारी के बाद फैजाबाद की सीमा सील कर दी गयी। फैजाबाद और अयोध्या को पुलिस छावनी में परिवर्तित कर दिया गया। अयोध्या के सन्तो महात्माओं एवं विद्वानों को घरो, मठों में नजर बन्द कर दिया गया। श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर पर पुलिस ने कब्जा कर लिया। वहाँ किसी भी व्यक्ति के जाने का निषेध कर दिया गया। पुनरुद्धार समिति के सदस्य और कार्यकर्त्ता जहाँ भी थे, उन्हें वहीं नजरबन्द कर दिया गया। अयोध्या एक सप्ताह तक नादिरशाही शासन की गिरफ्त में आ गया।
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