याचिकाकर्ता राजेंद्र प्रसाद (आर. पी.) गुप्ता के द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई थी। जिसमें यह अनुरोध किया गया था कि यू.आई.टी. शहडोल इंजीनियरिंग कालेज के प्रभारी प्रिंसिपल प्रभुलाल (पी.एल.) वर्मा के द्वारा वर्ष 2009 में पीएचडी की डिग्री कूटरचित तरीके से ली गई है।
पी एल वर्मा के द्वारा राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल से पीएचडी पाठ्यक्रम में फुल टाइम बेसिस पर अध्ययनरत होने के साथ – साथ उस ही समयावधि के दौरान एस.ए.टी.आई. विदिशा कॉलेज में एक नियमित शिक्षक के रूप में कार्य भी किया जा रहा था।
इस पाठ्यक्रम को पूर्ण करने के लिए एस.ए.टी.आई. विदिशा से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी प्राप्त नहीं किया गया था, जो कि किसी भी नियमित शिक्षक के लिए पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए अनिवार्य होता है। पीएचडी कोर्स में प्रवेश लेने के लिए इच्छुक कैंडिडेट के पास मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की डिग्री होना अनिवार्य होता है। इस सम्बंध में पी एल वर्मा द्वारा बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग कोर्स पूर्ण करने का जो विषय एवं सत्र दर्शाया गया था, वह विषय उस सत्र के दौरान बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी में संचालित ही नहीं होता था।
माननीय उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया संज्ञान में लेते हुए रिट याचिका में नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय भोपाल, बरकतउल्लाह यूनिवर्सिटी भोपाल, एस.ए.टी.आई. विदिषा एवं एआईसीटीई दिल्ली से जवाब तलब किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शिवम मिश्रा ने पैरवी की।