जनगणना में देरी, हो सकती है कई योजनाएं प्रभावित :
एच एल विश्वकर्मा रीवा मध्य प्रदेश: भारत में हर 10 साल में होने वाली राष्ट्रीय जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए जो शोध हुए हैं उसमें ऐतिहासिक होते हुए जो शोध हुए हैं उसने ऐतिहासिक नीतियों को लेकर एक अंतर्दृष्टि प्रदान की है। जनगणना के आंकड़ों ने देश का विश्वसनीय आर्थिक इतिहास भी सामने रखा है। हर दशक में होने वाली जनगणना ना केवल जनसंख्या, घर, परिवार इकाइयों में वृद्धि को दर्ज करती है बल्कि आयु, साक्षरता, संतानोत्पत्ति और प्रवास का भी लेखा-जोखा पेश करती है।
वर्ष 2021 की जनगणना दो चरणों में कराई जानी थी। पहले चरण में आवासों और मकानों की गिनती और दूसरे चरण में आबादी की। सरकार ने मार्च 2019 में इसे अधिसूचित किया। जनगणना कार्य शुरू करने से पहले गांव कस्बों की प्रशासनिक सीमाओं में परिवर्तन पर रोक लगाना अनिवार्य है। पहला चरण 2020 में अप्रैल से सितंबर तक और दूसरा चरण इसके बाद कराया जाना था। इसे तीन बार स्थगित किया जा चुका है। हाल में एक आदेश के तहत प्रशासनिक सीमाओं में परिवर्तन करने की छूट जून 2023 तक बढ़ा दी गई है। जनगणना में 10 11 माह लगते हैं। इसका मतलब है कि जब जनगणना होगी तब अप्रैल या मई 2024 में होने वाले आम चुनाव की तिथियों से भी टकरा सकता है । ऐसे में यह भी लगता है कि शायद 2021 की जनगणना की महामारी और टीकाकरण की आड़ लेकर डालने की तैयारी हो सकती है। ऐसा हुआ तो इसका व्यापक असर होगा। पहला असर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधान पर होगा जिसके तहत 75 फ़ीसदी ग्रामीण और 50 फ़ीसदी शहरी परिवारों को कवर करना अनिवार्य है। सरकार ने अधिनियम के तहत 81 करोड लोगों को मुफ्त राशन की घोषणा की है। जनसंख्या 2011 की जनगणना पर आधारित है। 2022 तक की जनसंख्या के जो अनुमान हैं उससे यह संख्या कम से कम 10 करोड़ कम होने की उम्मीद है। वही संख्या में परिवार इस से वंचित रह सकते हैं। बुजुर्गों को पेंशन जैसी कल्याणकारी योजनाएं भी लक्ष्य को पूरा करने में पीछे रह सकती है। प्रवासियों के बारे में सटीक जानकारी की जरूरत रहती है। जनसंख्या में एक प्रवासी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो जन्म स्थान से अलग जगह पर काम करता है। कितने प्रभावी हैं? कितने कुछ माह के लिए और कितने दीर्घावधि से हैं? इसका भी पता चलता है। जनगणना आंकड़ों से केंद्र व राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं का आकलन भी होता है। प्रधानमंत्री आवास योजना की स्थिति कैसी है? स्वच्छ भारत के तहत निर्मित कितने शौचालय काम कर रहे हैं? घरों में पाइपलाइन के जरिए जल आपूर्ति की स्थिति क्या है? जब हम जनगणना आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो हजारों ऐसे सवालों के जवाब मिल सकते हैं। इसके डेटा प्रमाणिक और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उपकरण के रूप में काम करते हैं। भारत की सांख्यिकी प्रणाली को लेकर डॉ रंगराजन आयोग की 2001 की रिपोर्ट में नोडल और सशक्त निकाय के रूप में कार्य करने के लिए सांख्यिकी पर एक स्थाई आयोग की सिफारिश की गई थी। जनगणना जैसे सार्वजनिक डेटा पर की गई योजनाओं की आर्थिक गतिविधियां निर्भर करती है। इसमें किसी भी स्तर की देरी से सवाल उठना स्वाभाविक है। खामियां होने के बावजूद डाटा को बड़े पैमाने पर जारी करना और उनका विश्लेषण सबसे बेहतर है। हमारे पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों ने भी कोविड की महामारी के बावजूद जनगणना पूरी कर ली। सरकार को डिजिटल तकनीक के जरिए जनगणना प्रक्रिया को छोटा व सरल करने का रास्ता तलाशना होगा ताकि इन आंकड़ों का इस्तेमाल जनहित से जुड़ी योजनाओं में हो सके।
-एच एल विश्वकर्मा