Introduction
ट्रांजिस्टर (Transistor) का आविष्कार अमेरिका की बैल लैबोरेट्री में 1948 में विलियम सॉकले, जॉन वार्डीन तथा वेल्टर ब्रटेन के द्वारा किया गया था
ट्रांजिस्टर आने के बाद इलेक्ट्रॉनिक इण्डस्ट्री में आश्चर्यजनक परिवर्तन हुए। अधिकतर अनुप्रयोगों में निर्वात नलियों के स्थान पर ट्रांजिस्टर प्रयोग किये जाने लगे क्योंकि निर्वात नलियों की तुलना में ट्रांजिस्टर के बहुत से लाभ हैं
वैज्ञानिक उपकरणों की सूची |list off scientific instruments
1. ट्रांजिस्टर में किसी तापक अथवा फिलामेंट की आवश्यकता नहीं होती है। अत: Warming-up time की भी आवश्यकता नहीं होती है और Heating Power भी आवश्यक नहीं है।
2. ट्रांजिस्टर को निम्न वोल्टेज पर प्रयोग किया जा सकता है।
3. ट्रांजिस्टर, साइज में बहुत छोटे तथा वजन में हल्के होते हैं।
4. ट्रांजिस्टर बहुत कम पावर खर्च करते हैं अर्थात् Circuit Efficiency अधिक होती है।
5. ट्रांजिस्टर बहुत अधिक समय तक कार्य कर सकता है यदि उसकी कार्यकारी वोल्टेज निर्धारित सीमा से अधिक नहीं है।
6. ट्रांजिस्टर साइज में छोटे होने के कारण Shock rroof होते हैं।
ट्रांजिस्टर की संरचना (Structure of Transistor)
ट्रांजिस्टर मुख्य रूप से सिलिकॉन अथवा जरमेनियम का क्रिस्टल होता है, जिसमें अलग-अलग तीन रीजन होते हैं। यदि दो अर्धचालक डायोड एक दूसरे के विपरीतार्थ (Back to Back)
चित्र की भाति जोड़ दिये जाँय तो इस प्रकार से प्राप्त संयोजन को ट्रांजिस्टर कहते हैं। यह दो प्रकार के हो सकते हैं- 1. NPN 2. PNP,

चित्र में NPN Transistor दिखाया गया है, जिसमें तीन भाग होते हैं। बीच वाले भाग को Base कहते हैं तथा बाहरी दोनों भाग को Emitter तथा Collector कहते हैं। यद्यपि बाहरी दोनों भाग एक समान (N-type) होते हैं लेकिन उनके Functions को आपस में बदला नहीं जा सकता है
बम के प्रकार तथा बम से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी |bom full form
क्योंकि दोनों भागों की भिन्न-भिन्न Physical तथा Electrical Properties होती हैं। साधारणतया ट्रांजिस्टर का Collector Region, Emitter Region से बड़ा होता है क्योंकि Collector Region को अधिक उष्मा Dissipate करने की आवश्यकता होती है। Base
Region की Doping बहुत कम होती है तथा यह बहुत पतला होता है। Emitter Region Doping बहुत अधिक होती है तथा Collector Region को Doping, Emitted Region की Doping के बीच की होती है।
transistor in hindi
Emitter का कार्य इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करना है। (PNP ट्रांजिस्टर में Holes उत्सर्जित करता है) अथवा Emitter का कार्य Majority Caricrs को Base Region में inject करना है। NPN ट्रांजिस्टर में Emitter से उत्सर्जित होकर इलेक्ट्रॉन Base Region में पहुंचते है।
इनमें से अधिकतर इलेक्ट्रॉन Base Region को पार करके Collector Regon में पहुंच जाते है। Collector का कार्य, Base Region से आने वाले इन इलेक्ट्रॉनों को एकत्रित करना है। ट्रांजिस्टर में दो पी. एन. जंक्शन होते हैं।
एक जंकशन एमीटर तथा बेस के बीच में होता है जिसे अमीटर-बेस जंकशन अथवा एमीटर जंकशन कहते हैं। दसरा जंकशन बेस तथा कलेक्टर के बीच होती है जिसे कलेक्टर-बेस जंकशन अथवा कलेक्टर जंकशन कहते हैं। चित्र में एन. पी. एन. ट्राजिस्टर का संकेत प्रदर्शित किया गया है। जैसा कि संकेत में दिखाया गया है
ट्रांजिस्टर क्या है हिंदी में
एमीटर टर्मिनल में तीर का निशान बना होता है। तीर की दिशा Conventional Emitter Current को दिशा को प्रदर्शित करती है। चित्र 5.1 (4) में पी. एन. पी. ट्रांजिस्टर की संरचना एवं सकेत दिखाये गये हैं, जिसमें तीर को दिशा अन्दर की ओर होती है
जो यह प्रदर्शित करती है कि Conventional Emitter curent, एमीटर से बेस की ओर प्रवाहित होगी। पी. एन. पी. तथा एन. पी. एन. दोनों प्रकार के ट्रांजिस्टर बहुत अधिक प्रयोग किये जाते हैं। कभी-कभी एक ही सर्किट में दोनों प्रकार के ट्रांजिस्टर भी प्रयोग किये जाते हैं।
क्योंकि पो. एन.पी. ट्रांजिस्टर, एन. पी. एन. ट्रांजिस्टर का Complement होता है
अत: पी. एन. पी. ट्रांजिस्टर के लिए इलेक्ट्रॉन के स्थान पर Hole तथा Hole के स्थान पर इलेक्ट्रॉन लेते हैं तथा बैट्री की ध्रुवता विपरीत कर देते हैं।
लेकिन फिर भी एन. पी. एन. ट्रांजिस्टर ही अधिक पसन्द किया जाता है क्योंकि इसमें धारा का प्रवाह निर्वात नलियों की भाँति इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है।
इसीलिए निर्वात ट्रायोड के स्थान पर एन. पी. एन. ट्रांजिस्टर प्रयोग किया जाता है। ह ह