Home good morning sms जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन | good morning thought | jesa...

जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन | good morning thought | jesa khao ann vesa hove man

0
38

भारतीयों की ज्ञान प्राप्ति की तकनीक बहुत उत्तम है ,क्योंकि उनका चिंतन,मनन की पद्धतियों में गहरा राज छुपा होता है,आइये जानते हैं ऐंसी घटना से जो अन्न से मन को जोड़ती है।

जानते हैं यह अन्न से मन को जोड़ने का राज।

एक समय की बात है जब स्टेशन मास्टर के पास बासमती चावल बेचने वाला सेठ गया और परिचय हुआ,यह मिलने का क्रम लगभग मित्रता में बदल गया,धीरे -धीरे यह मित्रता सांठ-गांठ में बदल गयी।बासमती चावल वाले एक सेठ की स्टेशन मास्टर से साँठ-गाँठ हो गयी। सेठ को आधी कीमत पर बासमती चावल मिलने लगा ।

अचानक सेठ ने सुना कि यह क्रम जो उसके जीवन का है वह पाप युक्त हो रहा है ,तो क्यों न ईश्वरीय उपासना में संलग्न हो जाया जाए।और इस पाप से भरे कर्म के पीछे की शक्ति का समापन हो जाये।
इस विचार मंथन के बाद सेठ ने एक दिन बासमती चावल की खीर बनवायी और किसी साधु बाबा को आमंत्रित कर भोजन प्रसाद लेने के लिए प्रार्थना की ।

सेठ ने बाबा से कहा- “हे बाबा मै आपके तप और गहन शोध से प्रेरित हूँ, आप ईश्वर के करीब हैं में चाहता हूं कि बाबा आओ आप मेरे घर पे भोग स्वीकार करो।” तब साधु बाबा ने भी निमन्त्रण स्वीकारा। वे उस सेठ के घर आ गए बड़े प्रेम से बासमती चावल की खीर खायी।

बाबा के द्वारा खीर का भोग लगते ही,दोपहर हो चुकी थी,सेठ ने साधु बाबा को आराम कक्ष में रहने के लिए कहा। सेठ ने कहाः “हे बाबा ! अभी आराम कीजिए । थोड़ी धूप कम हो जाय फिर यहाँ से जाने का विचार कीजिये ।

साधु बाबा को भी बात जची और उन्होंने बात स्वीकार कर ली ।

बाबा जी के कक्ष मे सेठ ने 100-100 रूपये वाली 10 लाख जितनी रकम की गड्डियाँ चादर से ढँककर रख दी । क्योंकि पहले से ही इस कक्ष में वह रखता आ रहा था

अब साधु बाबा कक्ष में प्रवेशित हुए,और बिस्तर पर आराम करने लगे । खीर थोड़ी हजम हुई,तभी अचानक साधु बाबा को रुपयों में लापटा चादर दिखा तब अचानक ही बाबा के मन में विचार पैदा हुआ कि इतनी सारी गड्डियाँ पड़ी हैं, एक-दो उठाकर झोले में रख लूँ तो किसको पता चलेगा ?साधु बाबा ने एक गड्डी उठाकर रख ली। जैसे ही शाम हुई तो सेठ को आशीर्वाद देकर बाबा चल पड़े ।

सेठ दूसरे दिन रूपये गिनने बैठा तो 1 गड्डी (दस हजार रुपये) कम निकली ।
अरे सेठ ने विचार किया कि महात्मा तो भगवतपुरुष थे, वे क्यों लेंगे ?
अब सेठ के नौकरों की धुलाई-पिटाई चालू हो गयी । ऐसा करते-करते दोपहर हो गयी ।
दोपहर होते ही,साधु बाबा आ पहुँचे तथा अपने झोले में से गड्डी निकाल कर सेठ को देते हुए बोलेः “नौकरों को मत पीटना, गड्डी मैं ले गया था ।”
सेठ ने कहाः “हे बाबा ! आप क्यों लेंगे ? जब यहाँ नौकरों से पूछताछ शुरु हुई तब कोई भय के मारे आपको दे गया होगा । और आप नौकर को बचाने के उद्देश्य से ही वापस करने आये हैं क्योंकि साधु तो दयालु होते है । “

साधु बोले :- “यह दयालुता नहीं है । मैं सचमुच में तुम्हारी गड्डी चुराकर ले गया था ।

साधु ने कहा क्यों सेठ तुम सही बताओ कि तुम कल खीर किसकी और किसलिए बनायी थी ?”

सेठ ने पूरी बात विस्तार से बता दी कि स्टेशन मास्टर से चोरी के चावल खरीदता हूँ, उसी चावल से निर्मित वह खीर थी ।

साधु बाबा बोला अब सच सुनो सेठ, “चोरी के चावल की खीर थी इसलिए उसने मेरे मन में भी चोरी का भाव उत्पन्न कर दिया ।

जैसे ही सुबह पेट खाली हुआ, तेरी खीर का सफाया हो गया तब मेरी बुद्धि शुद्ध हुई कि
‘हे ईश्वर… यह क्या हो गया ??? मेरे कारण बेचारे नौकरों पर न जाने क्या बीत रही होगी । इसलिए तेरे पैसे लौटाने आ गया।’

इसलिए तो भारतीय कहावतों में सार छुपा है ____
“जैसा खाओ अन्न,वैसा होवे मन ।
जैसा पीओ पानी,वैसी होवे वाणी ।”

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

%d bloggers like this: