Jivitputrika Vrat Katha pujan vidhi :- आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को करने से पुत्र शोक नहीं होता। इस व्रत का स्त्री समाज में बहुत ही महत्व है। Jivitputrika Vrat में सूर्य नारायण की पूजा की जाती हैं। स्त्रियां Jivitputrika Vrat व्रत को निर्जल रहकर करती हैं और चौबीस घंटे के उपवास के बाद व्रत का पारण करती हैं। विधान : स्वयं स्नान करके भगवान सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं। धूप, दीप आदि से आरती करें एवं भोग लगावें। इस दिन बाजरा से मिश्रित पदार्थ भोग में लगाए जाते हैं।
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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा|Jivitputrika Vrat Katha
कथा : महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों की अनुपस्थिति में कृतवर्मा और कृपाचार्य को साथ लेकर अश्वथामा ने पांडवों के शिविर में प्रवेश किया। अश्वथामा ने द्रौपदी के पुत्रों को पांडव समझकर उनके सिर काट दिए। दूसरे दिन अर्जुन कृष्ण भगवान को साथ लेकर अश्वथामा की खोज में निकल पड़ा और उसे बंदी बना लिया। धर्मराज युधिष्ठिर और श्री कृष्ण के परामर्श पर उसके सिर की मणि लेकर तथा केश मूंडकर उसे बंधन से मुक्त कर दिया।
अश्वथामा ने अपमान का बदला लेने के लिए अमोघ अस्त्र का प्रयोग पांडवों के वंशधर उत्तरा के गर्भ पर कर दिया। पांडव उस अस्त्र का प्रतिकार नहीं जानते थे उन्होंने श्री कृष्ण से उत्तरा के गर्भ की रक्षा की प्रार्थना की। भगवान श्री कृष्ण ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके उसकी रक्षा की। किंतु उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न हुआ वालक म्रतः प्रायः था। भगवान ने उसे प्राण दान दिया। वही पुत्र पांडव वंश का भावी कर्णधार परीक्षित हुआ। परीक्षित को इस प्रकार जीवनदान मिलने के कारण इस व्रत का नाम ‘जीवित्पुत्रिका पड़ा। व्रती स्त्रियों द्वारा उड़दों का निगलना श्री कृष्ण का सूक्ष्म रूप में उदर प्रवेश करना माना जाता है।
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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सम्पूर्ण |Jivitputrika Vrat Katha sampurn