Rochak janakri : आइये जानते है भगवान् शंकराचार्य द्वारा बनाय गय 4 मठ में शङ्कराचार्य पद पर कौन अभिषिक्त हो सकता है ? भगवान शंकराचार्य जी (Shankara Charya ) ने देश को चारों दिशाओं में चार वेदों को आधार मानक चार आम्नाय पीठों की स्थापना की और उनके संचालनार्थ मठाम्नाय महानुशासनम् नामक ग्रन्थ संविधान के रूप में बना दिया।
इसी में उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा स्थापित इन पीठों पर जो लक्षणसम्मत आचार्य अभिषिक्त हो उन्हें मेरे अनुयायी मेरा ही स्वरूप समझे। इसी आधार पर इन पीठों पर अभिषिक्त आचार्य को जगद्गुरु शंकराचार्य‘ कहा जाता है ।
मठाम्नाय महानुशासनम्
मठाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार पीठ पर अभिषिक्त होने वाले आचार्य की योग्यता अर्हता यह है –
- पवित्र,
- जितेन्द्रिय,
- वेदवेदाङ्गविशारद,
- समस्त शास्त्रों का ज्ञाता और
- समन्वयकर्ता तथा ब्रह्मचर्यावस्था से ही जो दण्डी संन्यासी हो गया हो
वह शङ्कराचार्य पद के लिये अर्ह अथवा योग्य होता है । साथ ही शङ्कराचार्य जी के प्रस्थानत्रयी भाष्य अर्थात् ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता, उपनिषद् को पढ़ने-पढ़ाने की जिसमें क्षमता हो ऐसा व्यक्ति एक आचार्य के अंत में उस पीठ पर बैठाया जाता है। उस पर अन्य तीन पीठ के शङ्कराचायों का भी सहमति आवश्यक होती है। इसमें भी प्रथम तो गुरु ही अपने योग्य शिष्य का जीवनकाल में निर्देश कर देते हैं। यदि वे ऐसा नहीं कर पाये तो उस मठ से इतर अन्य तीन पीठो के शंकराचार्य उनका अभिषेक कर देते हैं।
ज्योतिष्पीठ की परम्परा में बाल ब्रह्मचारी ही शङ्कराचार्य होता है। क्योंकि यहाँ का पुजारी रावल भी बाल ब्रह्मचारी होता है। इस समय जो अन्य लोग स्वयं को शङ्कराचार्य कहते हैं, वे गृहस्थाश्रम में रह चुके हैं और उनमें प्रस्थानत्रयी के अध्ययन-अध्यापन की योग्यता भी नहीं है। उनका अपने पूर्वाश्रम से सम्बन्ध भी है।
संन्यास का अधिकारी कौन होता है ?
शङ्कराचार्य सन्यासी ही होता है, और संन्यास का अधिकारी वह होता है जो चर्मरोग से दूर हो, विकलांग न हो, नपुंसक न हो, उसे किसी प्रकार का रोग न हो और साथ ही उसने पैसा लेकर अध्यापन का कार्य न किया हो।
साथ ही जो व्यक्ति विदेश जाता रहता है वह संन्यास का अधिकारी नहीं होता और स्पष्ट है कि जब संन्यास का अधिकारी ही नहीं तो शङ्कराचार्य के योग्य कैसे हो सकता है?
यहाँ यह भी स्पष्ट करना उचित होगा कि शङ्कराचार्य पद का निर्धारण, वसीयत से नहीं होता। क्योंकि ऐसा होने लगा तो हर व्यक्ति अपने परिवार के लोगों, यथा -पत्नी, पुत्र आदि के लिए बसीयत लिखने लगेगा जो कि शास्त्रीय परम्परा के साथ-साथ धार्मिक मर्यादा के लिए भी अनुचित है।
वर्तमान में शङ्कराचार्य
वर्तमान में उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ एवं पश्चिमाम्नाय शारदापीठ द्वारका पर पूज्यपाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वतीजी महाराज पूर्वाम्नाय गोवर्धनपीठ पर पूज्य स्वामी निशलानन्द सरस्वती जी महाराज एवं दक्षिणाम्नाय मुंगेरी पीठ पर पूज्य स्वामी भारती तीर्थ जी महाराज जगद्गुरु शंकराचार्य के रूप में विराजमान है। इनके अतिरिक्त किसी अन्य को शंकराचार्य के रूप में स्वयं को उद्घोषित करने या तदनुसार कार्य करने का अधिकार नहीं है।