क्षमा भाव अंतस का भाव है। जो अंतस की शुद्धि के आकांक्षी हैं, वे सभी इस पर्व को मना सकते हैं। इस शाश्वत आत्मिक पर्व को जैन परंपरा ने जीवित रखा हुआ है। क्षमा तो हमारे देश की संस्कृति का पारंपरिक गुण हैं। यहां तो दुश्मनों तक को क्षमा कर दिया जाता है।
जैनों की संस्कृति के अनुसार
हमारी संस्कृति कहती है -मित्ती में सव्व भूयेसु, वैर मज्झं ण केणवि। प्राकृत भाषा की इस सूक्ति का अर्थ है सभी जीवों में मैत्री-भाव रहे, कोई किसी से बैर-भाव न रखे। जैन संस्कृति ने इस सूक्ति को हमेशा दोहराया है।
क्षमा शब्द से मतलब
क्षमा शब्द ‘क्षम’ से बना है, जिससे क्षमता शब्द भी बनता है। क्षमता का मतलब होता है ‘सामर्थ्य’। क्षमा का वास्तविक मतलब यह होता है किसी की गलती या अपराध का प्रतिकार नहीं करना। सहन कर जाने की सामर्थ्य होना यानी माफ कर देना। दरअसल, क्षमा का अर्थ सहनशीलता भी है। क्षमा कर देना, माफ कर देना बहुत बड़ी क्षमता का परिचायक होता है। इसलिए नीति में कहा गया है-‘क्षमा वीरस्य भूषणम् अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है, कायरों का नहीं। कायर तो प्रतिकार करता है। प्रतिकार करना आम बात है, लेकिन क्षमा करना सबसे हिम्मत वाली बात है।
इसलिए तो ध्यान रखिये
कभी कभी,
कुछ शब्द.
कुछ अर्थ..
कुछ बयान…
कुछ अंदाज…
दिल को ठेस लगा जाते है….
कभी हक़ीकत कड़वी होती है।
औऱ उसके लिए अभिव्यक्ति को कड़वा होना पड़ता है।
बेशक़, जान कर किसी दिल को आहत करने की मानसिकता नही रही….
पर अनजाने यह गुनाह हो जाता है…
कभी हम समझा नही पाते
कभी हम समझ नही पाते…
और तब लगती है दिलों को ठेस…
राग-द्वेष, के पन्नों को दिल से हटाने औऱ सदभावना के पन्ने लगाने की इस भावना में बंध करबद्ध क्षमा याचना करना ही चाहिए।
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जो सबसे पहले क्षमा मांगता है वह सबसे बहादुर है, जो सबसे पहले क्षमा करता है वह सबसे शक्तिशाली है और जो सबसे पहले भूल जाता है वह सबसे सुखी। …………….श्री मति माधुरी बाजपेयी मण्डला
ईसा मसीह का वाक्य है- हे पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते, ये क्या कर रहे हैं? वहीं कुरान (42/43) ने क्षमा को साहसिक मानते हुए कहा – जो धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो यह उसके लिए निश्चय ही बड़े साहस के कामों में से है।
हर्षचरित के अनुसार
बाणभट्ट ने हर्षचरित में क्षमा को सभी तपस्याओं का मूल कहा है-क्षमा हि मूलं सर्वतपसाम्। महाभारत में कहा है, क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है। बौद्धधर्म के ग्रंथ संयुक्त निकाय में लिखा है- दो प्रकार के मूर्ख होते हैं-एक वे जो अपने बुरे कृत्यों को अपराध के तौर पर नहीं देखते और दूसरे वे जो दूसरों के अपराध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नहीं करते। गुरु ग्रंथ साहिब का वचन है कि क्षमाशील को न रोग सताता है और न यमराज डराता है।