पुष्टि मार्ग का अर्थ उस प्रेम प्रधान भक्ति मार्ग से है, जहाँ भक्ति की प्राप्ति भगवान के विशेष अनुग्रह से अथवा तो विशेष कृपा से संभव हो पाती है। यह विश्वास कि जिस पर प्रभु कृपा करना चाहते हैं, जिसे मिलना चाहते हैं।। उसे ही मिल सकते हैं। जीव के प्रयत्न द्वारा नहीं अपितु प्रभु की कृपा द्वारा ही उनकी प्राप्ति संभव हो पाती है, यही पुष्टि मार्ग का मुख्य सिद्धांत है।
महापुरुषों द्वारा भक्ति के दो मार्ग बताये गये हैं
- एक मर्यादा मार्ग
- दूसरा पुष्टि मार्ग
मर्यादा मार्ग में जीव को अपने साधन द्वारा ही प्रभु प्राप्ति का विधान बताया गया है। जिस प्रकार एक बंदर के बच्चे को अपनी माँ को स्वयं पकड़ना होता है। उसे ही ये ध्यान रखना होता है, कि कहीं माँ मुझसे छूट न जाए और मैं गिर न जाऊँ मर्यादा मार्ग में स्वयं के प्रयत्न पर विश्वास किया जाता है।अथवा स्वयं के प्रयत्न द्वारा प्रभु प्राप्ति का विधान बताया गया है।
पुष्टि मार्ग में जीव का अपनी तरफ से कोई साधन और साधन की सामर्थ्य नहीं होता जिस प्रकार एक बिल्ली के बच्चे को अपनी माँ को पकड़ना नहीं पड़ता माँ ही स्वयं उसे पकड़कर इधर-उधर करती रहती है। उसी प्रकार पुष्टि जीव पूरी तरह प्रभु शरणागत ही होता है।। पूर्ण समर्पण के साथ जो मेरे प्रभु की इच्छा है। और जो मेरे हित में होगा वही मेरे प्रभु करेंगे, बस यही तो पुष्टि मार्ग का सिद्धांत है। पुष्टि मार्ग में साधन करना नहीं पड़ता अपितु भगवान स्वयं साधन बन जाते हैं। जहां साधन भी और साध्य भी केवल प्रभु ही हैं, वही तो पुष्टि मार्ग भी है।
पुष्टि मार्ग का एक अर्थ यह भी है कि जहाँ भक्ति तो पुष्ट होती ही होती है अपितु भगवान भी पुष्ट होते हैं। संपूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ अपने सभी कर्मों को अपनी प्रसन्नता का थोड़ा भी विचार किए बगैर केवल और केवल उस प्रभु की प्रसन्नता के लिए करने का भाव ही पुष्टि मार्गीय भक्ति का स्वरूप है।